बेंगलूरु, (परिवर्तन)। एक निजी लिमिटेड कंपनी के प्रबंध निदेशक को तब झटका लगा, जब उन्हें पता चला कि उनके खाते को इलाहाबाद बैंक एचएसआर लेआउट द्वारा एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) घोषित किया गया है।
इलाहाबाद बैंक की कहानी: अधिकारी करते हैं पद का दुरुपयोग





एक साक्षात्कार के दौरान, उन्होंने कहा कि खाते में 30 लाख रुपये का ऋण था, जिसे 30 जून 2019 को बैंक द्वारा एनपीए घोषित किया गया था। उन्होंने कहा कि अगले ही दिन आयकर विभाग से टीडीएस का पैसा अकाउंट में वापस आया, यह राशि 39,710 थी। मालूम हो कि व्यवसाय में विभिन्न प्रकार के उतार-चढ़ाव के बीच इस घटना से पहले इस प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को भारी वित्तीय नुकसान का सामना करना पड़ा,और समय पर लोन के ईएमआई का भूगतान न होने की वजह से लोन एनपीए हो गया था। इस मामले में प्राप्त अतिरिक्त जानकारी के अनुसार, प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के प्रबंध निदेशक ने इस दौरान हमेशा बैंक के संपर्क में रहने की कोशिश की और जैसे ही कहीं से कोई पैसा मिलता, उन्होंने तुरंत इसे बैंक में जमा कर दिया ताकि, खाते को एनपीए से बचाया जा सके। इस संबंध में, उन्होंने कई बार बैंक अधिकारी से भी अनुरोध किया था और कहा था कि मैं एनपीए से हटाए गए खाते को प्राप्त करने के लिए लगातार प्रयास कर रहा हूं। यह वर्ष 2019 था। वास्तव में, 12.02.2018 को, उन्होंने अपने निजी नाम पर एचएसआर लेआउट में स्थित इलाहाबाद बैंक से 18,700 रुपये का गोल्ड लोन लिया, जिसे बैंक ने गोल्ड लोन अकाउंट के रूप में खोला। उन्होंने कहा कि एनपीए की घोषणा के समय ऋण राशि लगभग 19,446 रुपये थी। उन्होंने यह भी कहा कि गोल्ड लोन खाते की ऋण राशि का उनके कंपनी खाते से कोई लेना-देना नहीं था, फिर भी इस ऋण खाते को बिना किसी सूचना के स्थानांतरित कर दिया गया। उन्होंने यह भी कहा कि गोल्ड लोन की सुरक्षा के लिए उन्होंने कुछ गहने गिरवी रखे थे। इस घटना के बारे में प्राप्त जानकारी के अनुसार, उस समय, जोनल कार्यालय, इलाहाबाद बैंक के डीजीएम श्री अर्मगम के आदेश पर, बैंक के प्रबंधक श्री कुमार ने एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी (एनपीए) से यह राशि गोल्ड लोन खाते में हस्तांतरित किया गया है। उन्होंने बताया कि इस मामले में बिना ग्राहक की जानकारी या हस्ताक्षर, गोल्ड लोन एकाउंट को ट्रांसफर कर एकाउंट को बंद कर दिया गया। चूंकि यह पूरी तरह से अवैध और गैर कानूनी है और चूंकि खाता पहले से ही एनपीए था, इसलिए बैंक ने एनपीए खाते से ऐसे खाते में राशि को कैसे स्थानांतरित किया, जो प्राइवेट लिमिटेड कंपनी से संबंधित नहीं था और इसमें जहां पहले से ही ऋण सुरक्षा के तौर पर रखा गया है। इससे ये साफ होता है कि बैंक द्वारा किया गया ये कार्य स्पष्ट रूप से ग्राहक को परेशान करने के उद्देश्य से किया गया था। प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के प्रबंध निदेशक ने कहा कि बीते वर्ष 9 या 10 जुलाई के बीच उन्हें इलाहाबाद बैंक से फोन आया, और उन्हें बताया गया कि आपका गोल्ड लोन खाता बंद कर दिया गया है, इसलिए आकर अपना गिरवी रखा हुआ सोना ले जाएं। जिसके बाद उन्होंने बैंक अधिकारी से पूछा कि आप बिना किसी सूचना के खाता कैसे बंद कर सकते हैं। तो बैंक अधिकारी ने जवाब दिया कि जो पैसा आपकी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी (एनपीए) के खाते में था, उसे ट्रांसफर करके लोन अकाउंट को बंद कर दिया गया है। उन्होंने सरल शब्दों में बैंक अधिकारी से पूछा कि जब मैं एनपीए से बाहर निकलने के लिए लगातार प्रयास कर रहा हूं और समय-समय पर यथासंभव धन जमा कर रहा हूं, तब भी खाता बंद क्यों किया गया। उनके सवाल पर, इलाहाबाद बैंक के अधिकारी ने कहा कि उन्हें यह आदेश डीजीएम श्री अर्मगम से मिला है। अधिकारी ने यह भी कहा कि हम आपकी समस्या को समझते हैं लेकिन हम इस समय कुछ नहीं कर सकते। उन्होंने उससे कहा कि आप इस बारे में डीजीएम से बात करें। प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के प्रबंध निदेशक, इलाहाबाद बैंक द्वारा एचएसआर लेआउट में किए गए इस गैर कानूनी कार्य से तंग आकर, बैंक के ज़ोनल कार्यालय, जो कि बेंगलूरु के डिकनसन रोड स्थित मणिपाल सेंटर में है, डीजीएम श्री अर्मगम के समक्ष अपनी शिकायत लेकर पहुंचे। लेकिन जैसे ही वह वहाँ पहुँचे, डीजीएम अर्मगम ने उनसे सीधे मिलने से इनकार कर दिया और बैंक अधिकारी को एक आदेश भी जारी किया कि कोई भी उनसे बात नहीं कर सकता। इतना ही नहीं डीजीएम अर्मगम ने अपनी सारी हदे पार करते हुए एक चपरासी के माध्यम से एक संदेश भिजवाया और कहा कि हमारे पास ये करने का अधिकार है और हम ये करेंगे, आपको जो करना है आप कर लें। इतना कहते हुए उन्होंने प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के प्रबंध निदेशक को बैंक से बाहर का रास्ता दिखा दिया। बैंक अधिकारी और डीजीएम अर्मगम के इस दुर्व्यवहार के बाद, उन्होंने इलाहाबाद बैंक के क्षेत्रीय कार्यालय, शाखा कार्यालय को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने अपने साथ हुए इस कदाचार के बारे में पूरी जानकारी दी। उन्होंने यह पत्र बैंक के मुख्य कार्यालय, कोलकाता और आरबीआई को भी भेजा। इस शिकायत को लेकर उन्हें केवल इलाहाबाद बैंक के शाखा कार्यालय से जवाब मिला, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि बैंक द्वारा लिया गया निर्णय केवल आपकी मदद करने के लिए था। बैंक द्वारा प्राप्त असंतोषजनक प्रतिक्रिया से, उन्होंने कानूनी सलाह के माध्यम से फैसला किया है कि वह मामले के बारे में बैंक के प्रबंधक और डीजीएम अर्मगम के खिलाफ स्थानीय पुलिस स्टेशन में एक प्राथमिकी दर्ज करेंगे। उनके द्वारा दिखाए गए दस्तावेज़ों के अनुसार, उन्होंने अपना खाता इलाहाबाद बैंक में वर्ष 2009 में खोला, जिसके बाद बैंक के साथ उनका लेन-देन लगभग 2017 तक स्पष्ट रहा। उन्होंने यह भी कहा कि उनके पास इस मामले से संबंधित सभी दस्तावेज हैं, जब समय आएगा, वह निश्चित रूप से उन्हें सबके सामने लाएंगे। जैसा कि हमने अपने पिछले अंक में इलाहाबाद बैंक में चल रहे भ्रष्टाचार के बारे में खुलकर लिखा था। यह इलाहाबाद बैंक के अधिकारियों द्वारा किए गए दुर्व्यवहार की केवल एक कहानी मात्र है। न जाने जितने बैंक खाताधारक हर दिन इस तरह की समस्याओं का सामना करते हैं। जहां बैंक के शीर्ष पदों पर बैठे अधिकारी अपनी शक्ति या स्थान का दुरुपयोग करते हैं और निर्दोष लोगों के साथ ऐसा घिनौना व्यवहार करते हैं। हमारे पास इलाहाबाद बैंक के खिलाफ ऐसी कई कहानियां हैं, जिन्हें हम अपने पाठकों तक समय-समय पर अपने अखबार के माध्यम से पहुंचाएंगे।