कहते हैं इन्सान की नीयत साफ होनी चाहिए। वाकई यह बात बहुत अहम है, क्योंकि इन्सान की नीयत का सीधा संबंध उसकी इज्जत यानी प्रतिष्ठा से है। हम यहां आपको ऐसी ही कहानी बताएंगे, जिसमें एक पंडितजी यदि 10 रुपए के लालच में पड़ जाते तो शायद उनका पूरा मान-सम्मान चला जाता। एक गांव में एक पंडितजी रहते थे। उनकी और उनके प्रवचनों ख्याति दूर-दूर तक थी। एक दिन पास के गांव के मंदिर के पुजारी का आकस्मिक निधन होने से उन्होंने उस गांव में पूजा के लिए जाना पड़ा।
लालच बुरी बला है पंडितजी !





पंडितजी बस में जा रहे थे। उन्होंने कंडक्टर को किराया दिया। बाकी पैसे लौटाते समय कंडक्टर ने 10 रुपए ज्यादा दे दिए। पंडितजी ने नोट मुट्ठी में रख लिया। उनके मन में पहला ख्याल यह था कि कंडक्टर दोबारा आएगा और अपना 10 रुपए का नोट ले जाएगा, लेकिन वह नहीं आया। इस पर पंडितजी ने सोचा, बस मालिक तो लाखों रुपए कमाता है। 10 रुपए मैं रख लूंगा तो क्या फर्क पड़ जाएगा। यह सोचते-सोचते उन्होंने तय कर लिया कि वह नोट मंदिर में चढ़ाएंगे और खुद रख लेंगे। इस बीच, वह स्थान आ गया, जहां पंडितजी को उतरना था।
पंडितजी उतरे, लेकिन उनका मन नहीं माना और उन्होंने पलटकर कंडक्टर को नोट पकड़ते हुए कहा, भाई, तुमने किराया लौटाते समय मुझे दस रुपए ज्यादा दे दिए थे। इस पर कंडक्टर ने जो कहा, वह सुनकर पंडितजी के होश उड़ गए। कंडक्टर बोला - क्या आप ही गांव के मंदिर के नए पुजारी हैं? पंडितजी के हामी भरने पर कंडक्टर आगे बोला, मेरे मन में कई दिनों से आपके प्रवचन सुनने की इच्छा थी, आपको बस में देखा तो ख्याल आया कि चलो देखते हैं कि मैं अगर ज्यादा पैसे दूं तो आप क्या करते हो।अब मुझे विश्वास हो गया कि आपके प्रवचन जैसा ही आपका आचरण है। इतना कहकर कंडक्टर ने बस आगे बढ़ा दी। पंडितजी ने मंदिर की ओर जाते-जाते भगवान का शुक्रिया अदा किया कि हे प्रभु आपका लाख-लाख शुक्र है जो मुझे बचा लिया। मैंने तो दस रुपये के लालच में आपकी शिक्षाओं की बोली लगा दी थी। पर आपने सही समय पर मुझे सम्हलने का अवसर दे दिया।